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Monday, December 26, 2011

Secrets of The Chambers-3


संजय ने तुरंत मोबाइल निकालकर सुरेंद्र के नंबर पर डायल किया. सुरेंद्र ने दूसरी ही घंटी पर फोन उठाया. संजय ने पूछा, कहां जा रहा है. सुरेंद्र ने जल्दी से कहा, कहीं नहीं. बस थोड़ा सा काम है. मैं दो-तीन दिन में लौटूंगा. फिर सुरेंद्र ने पूछा, तुझे कहां जाना है. संजय ने कहा, मैं तो होटल पर खाना खाकर रूम पर ही जाऊंगा. एक पल की खामोशी के बाद सुरेंद्र ने कहा, यार तू एक काम कर यहीं से गांव चला जा. संजय ने हैरान होते हुए पूछा, क्यों. सुरेंद्र ने कहा, ऐसा है.. और फिर उसकी आवाज आनी बंद हो गई. जैसे फोन बीच में कट गया हो. उसने कई बार नंबर ट्राई किया, लेकिन फोन अनरिचेबल होने का मैसेज आता रहा. संजय को कुछ समझ नहीं आया. उसे भूख लगी हुई थी. वैसे भी पैसे बचाने के चक्कर में उसने सुबह का नाश्ता बंद कर दिया है. बस दोपहर और रात का खाना खा रहा है. अब बुरा लगने लगा है बार-बार गांव से पैसे मंगाना. पिता जी तो पैसे भेज देते हैं, लेकिन वो जानता है कि छोटी सी खेती में वो कैसे उसका खर्च उठा रहे हैं.
संजय टहलता हुआ कालेज के पास मौजूद एक ढाबे पर पहुंचा. यहां अक्सर वो दोपहर का खाना खाता है. यहां कालेज के ही अधिकतर हॉस्टलर खाना खाते हैं. दरअसल यहां कुल मिलाकर चार टेबल हैं. जिसको जहां जगह मिल जाती है, थाली सजा लेता है. संजय भी पांच लोगों की थाली से लदी एक टेबल पर कोने में जम गया. अमूमन जो आवाज होटल पर सबसे पहली लगती है, वही उसने भी लगाई. छोटू... खाना लगा दे. छोटू जो अब छोटा नहीं रह गया था. इस ढाबे पर ड्यूटी बजाते हुए अब वो बीस साल का हो गया था, उसके सामने गिलास पटक गया. संजय खाने का इंतजार कर रहा था, तभी अधेड़ उम्र का एक शख्स होटल में दाखिल हुआ और सीधा संजय के सिर पर आ खड़ा हुआ. उसने बिना कोई परिचय दिए सपाट लहजे में कहा, जरा बाहर आ, तुझ से बात करनी है. संजय ने सिर उठाकर ऊपर की तरफ देखा. वो शख्स संजय के लिए सरासर अंजान था. संजय ने उठने की कोशिश न की, तो अजनबी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर टहोका. बाहर चल... संजय को ताव आ गया और उसने अजनबी का हाथ झटक दिया. उस समय ढाबे में मौजूद अधिकतर युवकों का ध्यान खाने से हटकर संजय की तरफ चला गया. अमूमन सब एक-दूसरे के लिए परिचित चेहरे थे. कालेज के ही एक लड़के से एक अजनबी की धौंस-पट्टी देखकर संजय की टेबल पर ही बैठा एक लड़का बोल पड़ा, कौन है बे तू. यो जब बाहर न जा रहा, तो क्यों जबरदस्ती कर रहा है. यहीं बता दे, क्या कहवे है. अजनबी के चेहरे पर अजीब से भाव आए, उसने ढाबे के बाहर की तरफ झांककर किसी को आने का इशारा किया. बाहर खड़ी दो बलेरो गाड़ियों में पांच लोग उतरे. उनमें से दो के हाथ में आटोमेटिक वैपन थे. सब धड़धड़ाते हुए अंदर घुसे, संजय ने उठने की कोशिश की, तो अधेड़ ने उसे धक्का देकर वहीं जमीन पर गिरा दिया. फिर आनन-फानन में पांचों लोगों ने उसे काबू में किया और धकेलते, लात मारते हुए बलेरो के पास लेकर पहुंचे. तीन लोग मिलकर उसे बलेरो के अंदर ठूंसने की कोशिश करने लगे. संजय अंदर न जाने के लिए जान लगाता रहा. इतनी देर में पीछे से किसी ने लात मारी और वो बलेरो की पिछली सीट पर मुंह के बल जाकर गिरा. संजय को कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी बलेरो का दूसरी तरफ का गेट खुला, और एक शख्स ने उसके सिर पर रिवाल्वर की बट मार दी. संजय के सर से पांव तक दर्द की लहर दौड़ गई. उसने शरीर ढीला छोड़ दिया. तब तक तमाशबीन इकट्ठा हो गए थे, लेकिन हथियार देखकर किसी की हिम्मत नहीं थी कि बीच में बोल जाए. आनन-फानन में गाड़ी में लोग सवार हुए, दरवाजे बंद हुए. उसके बाद दोनों ही गाड़ियां बिजली की तरह सड़क पर लपकी और सामने आने वाले को रौंद डालने के अंदाज में भीड़ भरी सड़कों पर दौड़ पड़ी. संजय पिछली सीट के नीचे फर्श की तरफ मुंह करके फंसा हुआ था. एक शख्स ने उसका उसका सिर पीछे से पकड़कर फर्श से सटा रखा था. तकरीबन आधा घंटा चलने के बाद गाड़ी रुकी. इस दौरान कोई किसी से कुछ नहीं बोला. सब लोग गाड़ी में बैठे रहे. आगे की सीट पर बैठे शख्स ने मोबाइल पर किसी से बात करनी शुरू की. हैलो ... सर जय हिंद... हॉस्टल वाला लड़का हाथ लग गया है. चंद सैकेंड की खामोशी के बाद उसने आगे कहा, ले आए हैं. इसका रूम चेक कर लिया. वहां कुछ नहीं मिला सर. दूसरी तरफ से किसी ने कुछ कहा, तो फिर संजय को आगे की सीट पर बैठे शख्स की आवाज आई, सर बताएगा कैसे नहीं.... जी सर.... ठीक है सर..... सर दो घंटे तो कम हैं........... ओके सर. जय हिंद सर.....
इसके बाद गाड़ी फिर चल पड़ी. पांच मिनट बाद गाड़ी रुकी. संजय को लात मारकर गाड़ी उतारा गया. उतरते ही एक और लात कमर पर लगी, तो संजय जमीन पर गिर पड़ा. फिर किसी ने पीछे से उसका कालर पकड़कर उठाया. संजय ने देखा, चारों तरफ खेत थे. खेत के बीच में दो कमरे बने थे. साथ में एक छोटी सी कोठरी थी, जो शायद ट्यूबवैल थी. संजय को कमरे के अंदर ले जाया गया. कमरे में कोई खास सामान नहीं था. एक कोने में मेज रखी थी. चार प्लास्टिक की कुर्सियां थीं. कमरे में घुसते ही संजय को एक धक्का लगा, वो ठंडे फर्श पर चित पड़ा था. संजय के दिमाग को जैसे लकवा मार गया था. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है. कमरे में उस समय तीन लोग मौजूद थे. दो ने कुर्सियां कब्जा लीं. तीसरे ने उसके पास पहुंचकर बिना कोई बात किए, उसकी पसली में जोरदार ठोकर मारी. संजय के मुंह से जोरदार कराह निकली. उसकी आंखों से पानी बहने लगा. ऐसी ही दो और ठोकर के बाद संजय को लगा कि वो अब और नहीं झेल सकता. वो ठोकर मारने वाले के पैर से लिपट गया. संजय दर्द भरी आवाज में मिमियाया... मुझे क्यों मार रहे हो. मैंने कुछ नहीं किया. मारने वाले ने अपने छुड़ाने की कोशिश की, संजय पैरों से लिपटा रहा. कुर्सी पर बैठे तमाशा देख रहे, दोनों लोगों में एक उठा और उसने पास आकर संजय की दोनों टागों के बीच जोरदार लात मारी. संजय पैर छोड़कर दोहरा होने लगा. अब बस उसके मुंह से मर गया... मर गया... की आवाज निकल रही थी. इसी दौरान किसी ने उसके बाल पकड़कर खींचे, दर्द से शरीर सीधा हुआ, तो फिर दो ठोकर लगी. अब संजय के होश जवाब देने लगे थे. उसका दिमाग बस ये पूछ रहा था कि मुझे क्यों मार रहे हैं... लेकिन ये सवाल दर्द के कारण जुबान तक नहीं आ रहा था... कोई संजय से कुछ नहीं पूछ रहा था.
तभी एक रौबदार आवाज कमरे में गूंजी, गजराज... कुछ बोला स्स्साला...
गजराज लेदर जैकेट पहने छह फिट के आदमी का नाम था, ना साहब... अपने आप तो यो कुछ न बोला... हमने अभी पूछी ना..
रौबदार आवाज वाला शख्स संजय के सिर के पास आ गया. कमरे में पहले से मौजूद एक शख्स ने संजय के सिर के पास प्लास्टिक की कुर्सी सरका दी. रौबदार आवाज वाला शख्स कुर्सी पर बैठ गया. उसने बहुत सर्द लहजे में संजय से कहा, तीस लाख कहा हैं......
संजय हैरान रह गया. उसने बामुश्किल ताकत जुटाकर पूछा, तीस लाख.... सर कौन से.... मुझे नहीं पता...
रौबदार आवाज वाले शख्स ने कुछ नहीं पूछा. गजराज संजय के पास आया और जमीन पर फैले दाएं हाथ की हथेली पर पैर रखकर खड़ा हो गया. गजराज ने कहा, मादर... तुझे साहब की बात समझ ना आई. तीस लाख कहां हैं....
संजय ने कहा, सर कोई गलतफहमी हुई है. सर मुझे सच में नहीं पता. सर मैं मां कसम कह रहा हूं. सर....
रौबदार आवाज फिर कमरे में गूंजी, गजराज ये बहुत शातिर लगता है. मुझे दो घंटे में कप्तान साहब को रिपोर्ट करना है. जो करना है करो, इसकी जुबान खुलवाओ...
इशारा मिलते ही दो लोगों ने संजय को उठाया और मेज पर उलटा लिटा दिया. संजय का मुंह फर्श की तरफ था. उसे नहीं पता था कि उसके साथ क्या होने वाला था. तभी उसके पैर के तलवे पर डंडे का जोरदार वार हुआ. ये दर्द असहनीय था. वो चिल्ला पड़ा, तो चार मजबूत हाथों ने उसे और मजबूती के साथ दबोच लिया. इसके बाद संजय के पैर पर डंडा चलता रहा, जब तक चीख सकता था संजय चीखा... फिर आवाज साथ छोड़ गई. वो गिड़गिड़ाता रहा... कभी उसके मुंह से निकलता सर माफ कर दो.... कभी, सर मर जाऊंगा.... कभी, सर मां कसम मैंने कुछ नहीं किया, कभी, मर गया..... कभी, आई.... मां..... मर गया..... कभी, .... मत मारो......
क्रमशः

3 comments:

sachin tyagi said...

abhi to ye tubewell ka nazara hai. abi se aai maa... chamber ka nazara to abi baaki hai sanjay...good going sir!!!

mridul tyagi said...

thanks.... ye kisi ke dard ki intha hai... ye police hai... isey bus apni pasand ka jawab chahiye

Ashu said...

sanjay police ko uski pasand ka jawab deta hai ya pit,te pit,te mar jata hai...dekhna dilchasp hoga...

Apradh with Mridul