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Monday, December 5, 2011

एक चोरी, एक फरेब-फाइनल पार्ट

अक्सर वारदात न खुलने का ये सिलसिला असल में पुलिस की वर्किंग की मूल खामी से जुड़ा हुआ है. कत्ल से लेकर जेबकतरी तक की घटनाओं में मुल्जिम सामने होता है, लेकिन पुलिस के हाथ उसके गिरेबां तक नहीं पहुंच पाते. कुछ मामलों में फर्जी गिरफ्तारियां होती हैं, जो कोर्ट में औंधे मुंह गिर जाती है. अपराध की जांच बहुत संजीदा मामला है. बिना पूर्वाग्रह के, हर संभावना-आशंका पर गौर करते हुए. शुबहा जांच की पहली कड़ी है. और अगर शक की पतली सी किरण भी किसी शख्स तक पहुंच रही है, तो उसका संदिग्ध के दायरे में रहना जरूरी है. अपराध की घटनाएं असल में तीन चीजों पर टिकी हैं. पहला अवसर. किसे वारदात अंजाम देने का मौका हासिल था. दूसरा मोटिव (किसके पास वारदात को अंजाम देने का उद्देश्य था). तीसरा क्षमता (यानी किसमें ये कुव्वत थी, अपराध को अंजाम देने के संसाधन भी इसी में शामिल हैं.
अगर पांच करोड़ की चोरी की इस वारदात में आप पुलिस की तफ्तीश को सिर्फ इन कसौटियों पर कसेंगे, तो इन तीनों की पैमानों पर पुलिस विफल रही. बस अवसर की उपलब्धता को लेकर सुविधाजनक निष्कर्ष और संभावित मुल्जिम को सामने देखकर उसने अपनी सोच के सारे दरवाजे बंद कर लिए. पुलिस की वर्किंग यही है. पहले मुल्जिम तलाशो, फिर उसे सुबूतों और गवाहों के जरिये फ्रेम कर दो. अजय कालरा पर पुलिस की पेश नहीं चली. लेकिन अब क्लाइमेक्स....
1. पूरे केस में सबसे निर्णायक और पॉजिटिव चीज गार्ड सही राम की गवाही थी, लेकिन पुलिस उसकी गवाही और सोनिया कालरा के इंकार के बीच ही अटक कर रह गई. उसने ये महसूस नहीं किया कि वह सही राम की गवाही और सोनिया कालरा के इंकार को एक साथ खारिज कर रही है.
2. मोटिव के मामले में जब ये तय हो गया था कि अजय कालरा के पास इस घटना को अंजाम देने का उद्देश्य नहीं है, तो फिर किसके पास है.
3. चोरी का अवसर अजय कालरा को मुहैया नहीं था. अजय कालरा चोर नहीं था, तो फिर और किसको चोरी का अवसर मुहैया था.
अब नतीजा देखिएः
चोरी की वारदात में सबसे बड़ा फरेब सोनिया कालरा की गवाही थी. सही राम की गवाही ऐन दुरुस्त थी. उसे किसी के खिलाफ गवाही देने की जरूरत नहीं थी. न ही किसी को फंसाने का कोई उद्देश्य उसके पास था. फिर सोनिया कालरा इस बात से क्यों मुकरी कि वो रात में अजय कालरा के दफ्तर में थीं. वो अजय कालरा के दफ्तर में थीं. उन्हें लगा कि सही राम उन्हें देख सकता है, इसलिए उन्होंने जोर से कहा कि अजय अंधेरे में तुम क्या कर रहे हो. असल में सोनिया कालरा उस समय किसी अपने को बचा रही थीं. वो अपना और कौन हो सकता है. अजय कालरा का बेटा शिशिर. असल में जिस समय सोनिया कालरा नीचे पहुंची, तो उस समय शिशिर करेंसी चेस्ट से चोरी कर रहा था. ठीक उसी समय उन्हें गार्ड सहीराम के खिड़की पर होने का अहसास हुआ. उन्हें त्वरित बुद्धि से काम लेते हुए अपने पति अजय का नाम लिया. उन्हें अंदाजा था कि अजय कालरा का नाम सुनकर सहीराम मुतमईन हो जाएगा. साथ ही अगर कल चोरी की वारदात खुल जाती है, तो सहीराम की गवाही से शक अजय कालरा की तरफ जाएगा और अजय कालरा चूंकि उस समय घटनास्थल पर नहीं थे तो अपने आप को आसानी से बेदाग साबित कर लेंगे. सोनिया कालरा की ये तरकीब काम कर गई. पुलिस अजय कालरा के पीछे लगी रही, जिन्होंने एक झटके में खुद को निर्दोष साबित कर दिया. बेटा पांच करोड़ की रकम लेकर निकल गया. और पांच करोड़ की इंडियन करेंसी को विदेशी करेंसी में बदलवाना किसी भी हवाला कारोबारी के लिए चुटकी का खेल है. शिशिर ने इस रकम की सूरत नेपाल में जाकर चेंज की, जहां भारतीय करेंसी बिना इंडियन एजेंसी की निगरानी के आराम से चलती है. पुलिस की फाइलों में ये मामला आज भी अनसुलझा पड़ा है.
एक ऐसा मामला जिसमें एक चोरी शामिल थी और पुलिस को मूर्ख बनाने लायक एक फरेब भी....



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